ऐतिहासिक किला आमेर के राजा पृथ्वीराज(बाबर के समयकालीन) के पुत्र जगमाल कछवाह के पुत्र खंगार की तृतीय पीढ़ी के ठाकुर अजब सिंह तिलोनिया के कनिष्ठ पुत्र ठा. हरिसिंह खंगारोत(जन्म 1630ई.) कछवाहो की खंगारोत खांप का मूल पुरुष था| तिलोनिया(संभार) से आकर इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण मिति चेत बुदी 13 दीतवार 1658ई. में कराया| यह काल आमेर के राजा रामसिंह प्रथम व सल्तनत बादशाह औरंगजेब का था| जिन्होंने ठाकुर हरिसिंह को विभिन्न युद्धो में विजयी होने पर लाम्बा की जागीर प्रदान की, एवं शाही मनसबदार से सम्मानित किया| यह अदम्य साहसी, शूरवीर, धर्मपरायण, तलवार के धनी थे| आमेर के शासको के प्रति जीवन पर्यन्त, निष्टावान, स्वामीभक्त सेनानायक बने रहे| ठा. हरिसिंह भावी राजा, कुं. बिशनसिंह का कोहुटा(पाकिस्तान) में संरक्षक नियुक्त हुए| खेबर के दर्रे से लेकर भरतपुर, मथुरा के जाट राजाओ के विद्रोह का दमन किया| मालपुरा परगना की जनता को मारवाड के वीर योद्धा दुर्गादास राठौड की लूटमार व आक्रमण को पराजित गतसिंह ईष्ट सिन्धोलिया माताजी से था| जो आज भी डिग्गी ठिकाने की कुल देवी है| लाम्बा का यह सिंह दिनांक 05-04-1695 ई. में जवार की गढ़ी मथुरा के पास युद्ध मोर्चे में शत्रु की तोप का गोला लगने से वीरगति को प्राप्त हुआ| इनकी देशभक्ति और स्वामिभक्ति से प्रभावित होकर कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने इस प्रकार शब्दों में पिरोया- ----------------------------------------------------------------------- हरिसिंह कछवाह, जाय जटवार बिटिलिय | बहु जटटन सिर कट्टी, खनित खणगनम् प्रविष्ट किये || यह लम्बापुर नाथ, बंस खंगार संग सक्ति | सेवन आलम शाह, आप कुरान नरेश रजि || दे दल मिलान जमुना पुलिन, संचरि आय सलाम करि | हरिसिंह सहित, ठडडे मिसल, रतवि अंजलि आदाब दिय || हरिसिंह हि आलम दये, रीझ खिलत हय राय | कूरम पति को कथन कर, जट्ट कदन हित लाय || “सूर्यमल्ल मिश्रण” --------------------------------------------------------------------------- औरंगजेब के शासनकाल में वह समय की भूल था, यदि वह अकबर के शासनकाल में होता और जितना औरंगजेब के लिए किया उतना अकबर के लिए करता तो उसकी योग्यता और क्षमता का सम्मान नवरत्नो में किया जाता| वह राजपूत स्वामी धर्म का प्रतिरूप तथा कछवाहो का सबसे बड़ा योद्धा था| “इतिहासकार - प्रो. कानूनगो” ठा.हरिसिंह खंगारोत के पौत्र जगतसिंह से आमेर के राजा माधोसिंह द्वारा किसी राजनैतिक कारणों से किले की चाबी मांगने पर लाम्बा से डिग्गी चले गये| इसी बीच यह किला वीरान रहा| 22 फरवरी 1939 को प्रजामंडल के आंदोलनकारी पं. हीरालाल शास्त्री, टीकाराम पालीवाल अन्य प्रख्यात नेताओ को सत्याग्रह आंदोलन चलाने पर इस किले में राजनैतिक बंदी के रूप में नजरबन्द रखा गया| देश की आजादी के बाद यहाँ पुलिस स्टेशन एवं विद्यालय प्रारंभ हुआ| 1956 से उच्च माध्यमिक विद्यालय चल रहा है| ठा. हरिसिंह द्वारा ग्राम लाम्बा में अतिसुन्दर जलाशय, कुण्ड, तालाब, देवी अन्नपूर्णा का मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, बंशीवाले का मंदिर तथा इस दुर्ग में शीश महल एवं उद्यान बनाये जो आज भी अनुपम है|